नवरात्र शक्ति साधना का संधि पर्व है निष्क्रिय ब्रम्ह जब सक्रिय होता हैं तो शक्ति आकार लेती है और यही
आदिशक्ति सृष्टीकी संरचना करती है –जड़ ,जीव और मनुष्य का सर्जन करती है |अतः यह संसार कुछ नहीं , बल्कि शक्ति का साधन है |यही शक्ति गायत्री , दुर्गा ,महालक्ष्मी ,महासरस्वती और महाकाली के रूप में प्रतिपादित होती है |इनकी प्रकृति की भिन्नता के होते हुए मूल में वही आदिशक्ति के रूप में प्रतिष्ठित होती है | शक्ति की उपासना होती है | दुर्गा की उपासना से दुष्प्रवृत्तियाँ नष्ट और गायत्री की साधना से सत्प्रवृत्तियों का उदय होता है | जीवन में दोनों की आवश्यकता है l
नवरात्रि क्यों मनाते है
दुर्गा सप्तशती मे देवी माहात्म्य का वर्णन करते हुये कहा गया है – देवी ने इस विश्व को उत्पन्न किया है और वे ही जब प्रसन्न होती है तव मनुष्यो को मोक्ष प्रदान कर देती है | मोक्ष की सर्वोत्तम हेतू वे ही है , वे ही ईश्वर की अधश्वरी है | दुर्गा जो की हिमालय की पुत्री मानी जाती है उसे अपने घर बुलाने के लिए उनकी मां ने प्रार्थना की और दुर्गापति भगवान शिव ने वर्ष मे केवल नौ दिनों के लीये ही यह आज्ञा दी | इन नौ दिनों मे भगवती दुर्गा विश्व में विचरण करती है और इस उपलक्ष्य में अपने घर आई पुत्री की पूजा पूरे भारत में शक्ति आराधना के रूप में संपन्न की जाती है |
नवरात्रि के नौ दिन ही क्यों
नवरात्रि पूजन प्रतिपदा से लेकर नवमी तक चलता है | इस पूजन के लिये दिन ही क्यों नियत किये गए है ? यह सार्थक प्रश्न है | चूंकि देवी दुर्गा नव विद्या है, इसलिये उनकी उपासना के लिये नौ दिन का समय निश्चित किया गया है | तृतीय शक्ति के तीन गुण है – सत्व , रजस और तम | इनको तिगुना करने पर ९ की संख्या प्राप्त होती है | जिस प्रकार यज्ञोपवीत में तीन बड़े धागे होते है और उन तीनों मे प्रत्येक धागा तीन – तीन धागों से होता है | उसी प्रकार प्रकृति , योग एवं माया का त्रिवृत रूप नवविध ही होता है | दुर्गा की उपासना मे उसके समग्र रूप की आराधना हो सके , इसी उद्देश्य से नवरात्रि के नौ दिन निश्चित किए गए है |
विजयोत्सव दशहरा , प्रारम्भ करें शुभ कार्य
विजयोत्सव क्षत्रियों के लिए भी बड़ा पर्व है | पौराणिक काल से ही इसे क्षत्रियों , राजाओं , वीरों का विशेष माना जाता रहा है | आज के दिन अस्त्र –शस्त्रों , घोड़ों , वाहनों आदि की विशेष पूजा की जाती है | इस दिन ब्राम्हण सरस्वती पूजन करते है | इसलिये विजयादशमी या दशहरा राष्ट्रिय पर्व है | रामायण पढ़े वाल्मिकी रामायण में विस्तृत वर्णन भी है कि राम-रावण महायुद्ध नवरात्रों में ही हुआ था | लंकाधीश रावण की मृत्यु अष्टमी नवमी के संधिकाल में तथा अंत्येष्टि दशमी को होना बताया गया है | बाद में विजयदशमी मनाने का उद्देश्य रावण पर राम की जीत यानी असत्य पर सत्य की जीत हो गया | आज भी सम्पूर्ण, रामायण की रामलीला नवरात्रि में ही खेली जाती है तथा दसवें दिन सायंकाल में रावण मेघनाद, कुम्भकर्ण के पुतले जलाये जाते है | विजयदशमी, विजयोत्स के दिन शक्तिदायिनी, ऊर्जा उत्सर्जित करने वाली देवि माता अपराजिता की पूजा की जानी चाहिए | महर्षि वेदव्यास ने इस देवी को आदिकाल की श्रेष्ठ फलदायिनी , देवताओं दवर पूजित, वन्दित तथा त्रिदेव-ब्रह्मा, विष्णु, महेश दवर प्रतिदिन ध्यान में लायी जाने वाली पूज्यनीय गायत्री स्वरुप देवी माना है | इस उत्सव पर निम्न मंत्र से इस देवि की पूजा आराधना की जानी चाहिए-
ॐ महादेव्यै च विद्महे दुर्गायै धीमहि तन्नो देवि प्रचोदयात् ||
ॐ नमः सर्व हितार्थायै जगदाधार दायिकेl साष्टांग्रोष्भ्रणामस्ते प्रयत्नेंन मया कृतः ||
नमस्ते देवी देवेषि नमस्ते ईप्सित प्रदे | नमस्ते जगतां धात्रि नमस्ते शंकरप्रिये ||
ॐ सर्वरुपमयीं देवी सर्व देवीमयं जगत | अतोष्हं विश्वरुपां तां नमामि परमेश्वरी ||
वैसे नवदुर्गा स्वरूपों ने भी राक्षसों का विनाश करने में युद्ध किआ था | इस युद्ध में अयोध्या के प्रतापी राजा दशरथ, जनकपुरी के राजा जनक जैसे राजाओं, यहाँ तक शोणक ऋषि जैसों ने भी दानवों से घोर संग्राम किया था, तब विजयोपरांत माता दुर्गा अपनी आदिशक्ति अपराजिता का पूजन करने के लिए शमी की घास लेकर हिमालय में अंतर्ध्यान हो गयी | आर्य व्रत के राजाओं ने इस विजय को उत्सव के रूप में मनाते हुए विजयदशमी पर्व प्रारंभ किया था | विजयोत्सव के दिन मैसूर में वहां के राजा की सवारी काफी प्रसिद्ध रही है | वह इस दिन हाथी पर बैठकर अपने महल से बाहर आते थे, दशहरा मैदान में पहुंचकर माँ अपराजिता की पूजा करते थे | राजाओं की परिपाटी समाप्त होने के बाद आज वहां के राज्यपाल इस परंपरा का निर्वहन करते है | इसी तरह, हिमाचल प्रदेश स्थित कुल्लू का दशहरा भी बहुत प्रसिद्ध है | यहाँ दशमी से अगले १५ दिन तक प्रतिदिन वहां के भूतपूर्व राजा या उनके वंशज का कोई व्यक्ति जनसभा में रावण दाह करके विजयदशमी का पूजन करता है | ऐसे ही सार्वजनिक उत्सव बनारस, इलाहाबाद में भी होते है | बंगाल में यह पूजन दुर्गा पूजा से ही जोड़ा जाता है | दुर्गा पूजा की महानवमी के बाद विजयदशमी के दिन कोलकाता समेत सारे बंगाल में मंदिरों में पंडाल सजते है, उत्सव मनाया जाता है | इसी दिन आदिशक्ति दुर्गा सहित काली पूजन तथा अपराजिता पूजन की रस्म भी निभायी जाती है | यों भारत में सभी शहरो, गाँवों में दशहरा पूर्व की धूम, उत्सव, रावण वध यानी उसका पुतला जलाने के दृश्य देखे जा सकते हैं | शहरों मे तो ‘दशहरा’ मैदान अलग ही होता है |
नवरात्रि पर दिवस अनुसार विशेष नैवेद्य व उसके लाभ
साधकों आपको नवरात्रि के नौ दिनों का माँ दुर्गाको चढ़ने वाले विशेष नैवेद्य व उनसे होने वाले लाभ का विवरण बता रहे है -
- प्रतिपदा तिथि – नवरात्रि के प्रथम दिवस प्रतिपदा को गौ घृत से षोडशोपचार पूजा कर गौ घृत अर्पण करें | इससे आरोग्य लाभ होता है|
- द्वितीया तिथि – शक्कर का भोग लगाकर उसे दान करे | शक्कर का दान दीर्घायु कारक होता है |
- तृतीया तिथि – को दूध की प्रधानता होती है | पूजन में दूध का प्रयोग कर उसे ब्राम्हण को दान करें | दूध का दान दुखों से मुक्ति का परम साधन है |
- चतुर्थी तिथि – चतुर्थी को मालपुआ का नैवेद्य अर्पण करे | सुयोग्य ब्राम्हण को दान करे | इससे बुद्धि का विकास होता है| निर्णय शक्ति में असाधारण विकास होता है |
- पंचमी तिथि – पंचमी तिथि को केले का नैवेद्य चढ़ावे प्रसाद ब्राम्हण को दान करें | इससे बुद्धि का विकास होता है | निर्णय शक्ति में असाधारण विकास होता है |
- षष्ठी तिथि –षष्ठी तिथि को मधु का विशेष महत्व है | मधु से पूजन कर ब्राम्हण को दान करने से स्वरुप में आकर्षण का उदय होता है |
- सप्तमी तिथि – को गुड़ का नैवेद्य अर्पण ब्राम्हण को करना शोक मुक्ति का कारक है | गुड़ दान से आकस्मित विपत्ति से रक्षा होती है |
- अष्टमी तिथि – को भगवती को नारियल का भोग लगाना तथा नारियल दान करना संताप रक्षक है |
- नवमी तिथि – को काले तिल का नैवेद्य अर्पण कर दान करने से परलोक का भय नहीं होता है |
नवरात्रि मंत्र साधना का महत्व
सुख – समृद्धि किसे नहीं चाहिए तो इसके लिए नवरात्रि में देवी के मन्त्रों की सिद्धि कीजिए | मंत्र साधना का मानव जीवन में महत्व एसलिए है कि यह मानव मंत्र की समस्त लौकिक एवं पारलौकिक कामनाओं की पूर्ति में उसकी सर्वाधिक सहायता करती है | मंत्र शास्त्र की भाषा में ‘इष्ट प्राप्ति’ एवं ‘अनिष्ट परिहार’ के विधि –विधानों का प्रतिपादन करने के कारण मंत्र साधना की उपयोगिता एवं महत्व हमेशा से मानव समाज को रहा है , हमेशा रहेगा | मानव जीवन की कैसी भी समस्या हो या कैसा भी संकट हो, मनुष्य मंत्र साधना द्वारा इसका निश्चित समाधान प्राप्त कर सकता है | ‘साधना शब्द का अर्थ बड़ा ही गूढ़ एवं अत्यन्त प्यापक है | कोई भी कार्य हो, उसका एक निश्चित साधन होता है , उसको प्राप्त करने की एक निश्चित प्रविधि या विधि – विधान होता है | अपने लक्ष्य या उद्देश्य की प्राप्ति की इसी प्रविधि या विधि – विधान को ‘साधना’ कहते है | यह साधना के माध्यम से साधक को उसके लक्ष्य तक पहुंचा देती है |
आगम शास्त्र के अनुसार , वे सब पदार्थ , जो सिद्धि में सहायक होते है , वे ‘साधन’ कहलाते है | उनका अबलम्बन या उन पर आचरण करना ही ‘साधना’ कहलाती है | इसीलिए कवि का ‘कविव’ , मुनि का ‘मुनिव’ एवं ऋषि का ‘ऋषिव’ साधना की देन या परिणाम है l मंत्र योग संहिता के अनुसार – मंत्र साधना अपने अभीष्ट की सिद्धि का प्रमुखतम उपाय है | यह प्रायोगिक विज्ञान है , जी साधक को साध्य से मिलाकर न केवल उसकी कामनाओं को पूरा करता है , अपितु वह साधक को परम आनन्द से आप्लावित कर देता है l मंत्र की साधना का महत्व इसलिए है कि इसके लिये साधक चाहे तो भीग या मोक्ष अथवा इन दोनों को प्राप्त कर सकता है | जगत की अन्य साधनाए या तो भोग या मोक्ष दे सकती है किन्तु मंत्र साधना अपने साधक को एक हाथ से भोग, दुसरे हाथ से मोक्ष देती है|
*सप्तशती के कुछ सिद्ध सम्पुट मंत्र*
श्रीमार्कण्डेयपुराणान्तर्गत देवीमाहात्म्यमें शलोक ,अर्धश्लोक , और उवाच आदि मिलाकर ७०० मंत्र है | यह माहात्म्य दुर्गासप्तशतीके नामसे प्रसिद्ध है | सप्तशती अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष, -चारों पुरुषार्थोंको प्रदान करनेवाली है | जो पुरुष जिस भाव और जिस कमानासे श्रध्दा एवं विधिके साथ सप्तशतीका पारायण करता है ,उसे उसी भावना और कामनाके अनुसार निश्चय ही फल –सिद्ध होती है | इस बातका अनुभव अगणित पुरुषोंको प्रत्यक्ष हो चुका है | यहाँ हम कुछ ऐसे चुने हुए मन्त्रोंका उल्लेख करते है , जिनका सम्पुट देकर विधिवत् पारायण करनेसे विभिन्न पुरुषार्थोंकी व्यक्तिगत और सामूहिक रूपसे सिध्दि होती है | इनमे अधिकांश सप्तशतीके ही मंत्र है और कुछ बाहरके भी है | ---
( १ ) सामूहिक कल्याणके लिये ---
देव्या यया ततमिदं जगदात्मशक्त्या निश्शेषदेवगणशक्तिसमूहमूर्त्या
तामम्बिकामखिलदेवमहर्षिपूज्यां भक्त्या नताः स्म विदधातु शुभानि सा नः |
(२) विश्वके अशुभ तथा भयका विनाश करनेके लिये ---
यस्याः प्रभावमतुलं भगवाननन्तो ब्रम्हा हरश्च न ही वक्तुमलं वलं च |
सा चण्डिकाखिलजगत्परिपालनाय नाशाय चाशुभभयस्य मतिं करोतु ||
( ३ ) विश्वकी रक्षाके लिये ---
याः श्री स्वयं सुकृतीनां भवनेष्वलक्ष्मीः पापात्मनां कृतधियां ह्रुदयेषु बुद्धिः ।
श्रद्धां सतां कुलजनप्रभवस्य लज्जा तां त्वां नतास्मः परिपालय देवि विश्वम् ॥
( ४ ) विश्वके अभ्युदयके लिये ---
वुश्वेश्वरी त्वं परिपासि विश्वं विश्वात्मिका धारयसिती विस्वम्
विश्वेशवन्द्या भवती भवन्ति विश्वाश्रया ये त्वयि भक्तिनम्नाः ||
( ५ ) विश्वव्यापी विपत्तियोंके नाशके लिये –
देवि प्रपन्नार्तिहरे प्रसीद प्रसीद मातार्जगतोऽखिलस्य |
प्रसीद विश्वेश्वरी पाहि विश्वं त्वमीश्वरी देवि चराचरस्य ||
( ६ ) विश्वके पाप –ताप –निवारणके लिये ---
देवि प्रसीद परिपालय नोऽरिभीते – र्नित्यं यथासुरवधादधुनैव सद्यः |
पापानि सर्वजगतां प्रशमं नयाशु उत्पातपाकजनितांश्च महोपसर्गान् ||
( ७ ) विपत्ति –नाशके लिये ---
शरणागतदीनार्तपरित्राणपारायणे | सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणी नमोऽस्तु ते ||
( ८) भय नाशके लिये ---
(क ) सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते | भयेभ्यास्त्राही नो देवि दिर्गे देवि नमोऽस्तु ते ||
( ख ) एतते वदनं सौम्यं लोचनत्रयभुषितम् | पातु नः सर्वभितीभ्यः कात्यायनी नमोऽस्तु ते ||
( ९ ) रोग – नाशके लिये
रोगान शेषा नपहंसि तुष्टारुष्टा तु कामान् सकलान भीष्टान् ।
त्वामाश्रितानां न विपन् नराणांत्वामाश्रिता ह्या श्रयतां प्रयान्ति ।।
१० महामारी –नाशके लिये ---
ॐ जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी ।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते ।।
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