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आयुर्वेद

मानव जीवन में सबसे महत्त्वपूर्ण चीज है अच्छा स्वास्थ्य |इस बात को ध्यान में रखकर विश्व के हर कोने में कुछ-न –कुछ आवश्यक शोध चलते रहते हैं, इन शोधकर्ताओं का एक ही उद्देश्य होता है कि ये मानव जीवन को सुखमय बनाने में भरपूर मदद कर सकें | इन शोधों के बारे में जानना, हम सभी के लिए उतना ही आवश्यक है जितना कि एक भूखे पेट के लिए भोजन | जीवन में रखते हुए ही हम यहां प्रस्तुत कर रहे हैं विभिन्न शोधों के माध्यम से सामने आई रोचक जानकारियां |


गाजर से घटाएं कैंसर का खतरा

हाल ही में हुए एक नए अध्ययन से पता चला है कि गाजर में मौजूद पाँलीएसिटिलीन ट्यूमरके विकास को नियंत्रित तथा कैंसर कोशिकाओं का खात्मा करता है |इस तरह कैंसर से मौत का खतरा घटाने में गाजर काफी मददगार साबित हो सकता है | चूहों पर अध्ययन करने के बाद इस बात का खुलासा हुआ कि यह कैंसर की रोकथाम में काफी अहम भूमिका निभा सकता है | इस शोध के बाद कैंसर  के इलाज के काफी प्रभावी दवाइयों के निर्माण की उम्मीद जताई जा रही है |गाजर के अलावा मुली, शलजम, जीरा, धनिया, सौंफ, अजवायन और मंगरैल में भी पाँलीएसिटिलीन भारी मात्रा में पाया जाता है | यह सुजन और दर्द से राहत दिलाने है | ऐसे में गठिया पीड़ितों के लिए भी इन चीजों का सेवन करना फायदेमंद साबित हो सकता है |


ब्रेन ट्यूमर हो सकेगा नियंत्रित

जर्मनी के वैज्ञानिकों ने ब्रेन ट्यूमर को रोकने वाले टिके की खोज की है | चूहों पर इस तिकेका ट्रायल सफल रहा है लेकिन मनुष्यों पर अभी इसकी जांच होना बाकी है | शोधकर्ताओं के अनुसार कुछ मरीजों के प्रतिरोधी तन्त्र में कैंसर कोशिकाओं से लड़ने की प्राकृतिक क्षमता होती है | लेकिन यह इतनी शक्तिशाली नहीं हो पाती है कि ट्युमर को बढने से रोक सके |टीके के जरिये इस प्राकृतिक शक्ति को मजबूत किया जा सकता है |प्रतिरोधी तंत्र को मजबूत करके इससे कैंसर पर नियन्त्रण स्थापित किया जा सकेगा | इस दिशा में और शोध इलाज का नया तरीका विकसित कर सकता है |


इनहेलर से ले पाएंगे इन्सुलिन 

डायबिटीज के मरीजो को अब रोज –रोज इंजेक्शन लेने की समस्या से छूटकारा मिल सकता है |अमेरिका में नए इन्हेरल ‘अफ्रेजा’ को डायबिटीक रोगोयों के लिए मंजूर मिल गई है ‘ जिसके बाद अब सांस के जरिये इन्सुलिन लिया जा सकेगा | हालांकि इसकी बिक्री अभी सिर्फ अमेरिका में होगी और ये सिर्फ टाइप – 1 और टाइप – 2 डायबिटीज मरीजों के लिए ही है | फले भी इस तरह की कोशिश हो चुकी है लेकिन साइज में बड़ा होने व फेफड़े के कैंसर के खतरे के कारण यह प्रयोग असफल हो गया | अभी नए इनहलेर पर भी चार और अध्ययनों की आवश्यकता है ताकि इससे होने वाले नुकसान के बारे में पता लगाया जा सके | इससे जुड़ी एक जरूरी बात ये है कि इसके प्रयोग के लिए फेफड़ों का स्वस्थ होना जरूरी है | अस्थमा और फेफड़े के संक्रमण के मरीज इसका इस्तेमाल नहीं कर पाएंगे | इस शोध को डायबिटीज के इलाज में एक बड़ा कदम माना जा रहा है | 


प्रजनन क्षमता प्रभावित करता है भांग 

हाल ही में हुए एक अध्ययन में दावा किया गया है कि भांग का सेवन करने वाले पुरुषों की प्रजनन क्षमता पर इसका प्रतिकूल असर पड़ सकता है क्योंकि इससे उनके शुक्राणुओं का आकार प्रभावित होता है | शोध के दौरान वैज्ञानिकों ने पाया कि गर्मी के महिनों में स्खलित वीर्य के शुक्राणुओं का आकार अच्छा नहीं था लेकिन जिन पुरुषों की यौन गतिविधि ६ दिन से अधिक समय बाद हुई , उनके शुक्राणुओं का आकार बेहतर था | स्मोकींग , शराब पीने और नशीले पदार्थों के सेवन का भी असर शुक्राणुओं पर देखा गया | वैज्ञानिकों का कहना है कि भांग का सेवन करने वाले अगर परिवार शुरू करने की योजना बना रहे हैं तो उनका इसका उपयोग बंद कर देना चाहिए | क्योंकि अध्ययन से यह बात साफ हो गई है कि असामान्य आकार की वजह से शुक्राणु कम असरदार हो जाते हैं |


अश्वगंधा व तुलसी में कैंसररोधी तत्त्व 

हमारे यहां बहुत सी ऐसी जड़ी – बूटियां हैं , जिनमें भयंकर रिगों को भी ठीक करने की क्षमता विद्यमान है | ऐसे हो गुण मिले हैं अश्वगंधा , तुलसी व गिलोई में जो फेफड़े व गर्भाशय के कैंसर कके इलाज में कारगर हैं | शोध करने वाले चिकित्सकों ने कैंसर से मुकाबला करने वाले तत्त्वों को इन पौधों में खोज निकाला है | उनका मानना है कि प्रतिरोधक क्षमता बढ़ने वाले सीडी - ३ , सीडी – ४ व सीडी - ८  मुख्य रूप से कैंसर को रोकने का काम करते है | शोध में देखा गया कि कैंसर के हमले के दौरान ये सेल्स नष्ट हो जाते है, जिससे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता ख़त्म हो जाती है | तुलसी, अश्वगंधा व गिलोई में ऐसे तत्त्व मिले है तो सीडी-३, सीडी-४ व सीडी-८ की संख्या को बढ़ाने मव सहायक होते हैं | इस पर किए गए प्रयोगों के परिणाम बेहतर आए हैं |     

स्वास्थ्य एवं आयुर्वेद

स्वास्थय

“शरीरमाद्यं खलु धर्म साधनम् |”

स्वास्थ्य सिर्फ बीमारियों की अनुपस्थिति का नाम नहीं है। हमें सर्वांगीण स्वास्थ्य के बारे में अवश्य जानकारी होनी चाहिए। स्वास्थ्य का अर्थ विभिन्न लोगों के लिए अलग-अलग होता है। लेकिन अगर हम एक सार्वभौमिक दृष्टिकोण की बात करें तो अपने आपको स्वस्थ कहने का यह अर्थ होता है कि हम अपने जीवन में आनेवाली सभी सामाजिक, शारीरिक और भावनात्मक चुनौतियों का प्रबंधन करने में सफलतापूर्वक सक्षम हों। वैसे तो अपने आपको स्वस्थ रखने के ढेर सारी आधुनिक तकनीक मौजूद हैं, लेकिन ये सारी उतनी अधिक कारगर नहीं हैं। अमूमन हम अपने व्यवहार, स्वभाव एवं व्यक्तित्व तथा बर्ताव आदि का जिम्मेदार अन्य लोगों, रिश्तों, किस्मत एवं परिस्थितियों आदि को हि समझते है | हमे लगता है इन्ही सब के कारण हम चिंतित एवं दुखी है, परन्तु क्या आप जानते है की हमारे व्यवहार का कारण हमारा आहार भी हो सकता है ? नहीं, तो जानिए किस तरह हमारा आहार हमारे व्यवहार को प्रभावित करता है | 


जैसा आहार वैसा व्यवहार

भूख मिटाने का एकमात्र साधन है भोजन | यह भोजन जिसे हम आहार के रूप में दिन भर तथा उम्र भर लेते है वह न केवल हमारा पेट भरता है बल्कि हमें ऊर्जा भी प्रदान करता है | हमारे आहार में हम क्या, कैसे व कितना खाते हैं वह हमें स्वस्थ्य रहने तथा रोगों से लड़ने में हमारी मदद भर करता है | यह मनुष्य जीवन का इतना अहम हिस्सा है कि इसके बिना मनुष्य की कल्पना भी नहीं की जा सकती | भोजन के ही माध्यम से हमारे शरीर में प्रोटीन – विटामिन, लवण – खनिज आदी जरुरी तत्त्व पहुंचते हैं जो हमारे शरीर का विकास करते हैं | सच तो यह है कि आदमी इसी भोजन के लिये कमाता व मेहनत करता है | भोजन का सही अनुपात यदि हमें बनाता है तो इसका असंतुलन हमें रुग्ण भी बना देता है | यह भोजन हमारे शरीर को ही नहीं हमारे मन को भी जिन्दा रखता है | यह हमारे शारीरिक ढांचे को ही नहीं हमारे व्यवहारिक जीवन को भी प्रभावित करता है | इसकी तासीर, इसकी सुगंध, इसमें पड़ने वाले मसाले तथा बनाने वाले का मन सब कुछ हमारे व्यवहार पर अप्रत्यक्ष रूप से अपना असर दिखाता है | इसलिये जब भी खाने की मेज पर आप भोजन के लिये जाएं तो इस बात का भी अवश्य ध्यान रखें कि यह आपके शरीर की ही नहीं मन की भी खुराक है | जिस तरह पेट एवं स्वास्थ्य की गड़बड़ी हमारे भोजन से जुड़ी है | वैसे ही हम जो, जैसा तथा जितना खाते हैं उसका असर हमारे मन पर भी पड़ता है और मन का सीधा सम्बन्ध स्वास्थ्य से है जो कई रोगों के रूप में हमारे शरीर को प्रभावित करता हैं | 


जैसा भोजन वैसा मन

भोजन से हमारा पेट ही नहीं भरता  हमारा मन भी यानी मूड भी बनता है | आपने महसूस किया होगा कि आहार यदि हमारे मन का हो तो हमारी भूख दोगुनी हो जाती है, वहीं यदि आहार मन अनुसार न हो तो हमारी भूख उड़ जाती है, जिसका सीधा प्रभाव हमारे मन पर पड़ता है | भोजन स्वादिष्ट एवं मन अनुसार होगा तो मन खुश रहेगा | मन खुश रहेगा तो मन शान्त रहेगा | मन शान्त रहेगा तब हम क्रोध, चिड़चिड़े पन से दूर रहेंगे | इन सब से दूर रहेंगे तो सम्बन्ध ठीक रहेंगे और सम्बन्ध ठीक रहेंगे तो हमारा जीवन ठीक रहेगा | साथ ही यदि हम क्रोध से बचेंगे तो हमारा रक्तचाप ठीक रहेगा | रक्तचाप सही रहेगा तो न केवल रक्त से सम्बन्धित बल्कि ह्रदय – मस्तिष्क सम्बन्धी रोग भी नहीं रहेंगे | 


ताजा भोजन

बासी खाना जहाँ स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याएं उत्पन्न करता है वहीं उसका रूप और गंध हमारे मन को भी प्रभावित करता है | इसलिए इस बात का विशेष ध्यान रखें कि जो भोजन आप कर रहें हैं वह ताजा, साफ व पूरी तरह पका हुआ हो | गंदा, बासी व अधपका भोजन तन के साथ – साथ मन को भी नुकसान पहुंचाता है | 


प्रस्तुतिकरण 

भूख बढ़ाने व मन बनाने में आहार के प्रस्तुतिकरण का भी बहुत बड़ा हाथ होता है | सुन्दर ढंग से सजाया गया एवं अच्छे बर्तनों में परोसा गया भोजन, भोजन के प्रति  आकर्षण पैदा करता है, जिसके चलते हमारा मन शांत होता है और हमारा व्यवहार निर्मल व सकारात्मक बनता है | 


सात्विक भोजन 

भोजन को हम उसकी ऊर्जा अनुसार तीन भागों में बांटते है सात्विक, राजसी और तामसिक | परन्तु रोजमर्रा में हम भोजन को दो ( शाकाहार और मांसाहार ) भागों में बांटते हैं | शाकाहार न केवल सुपाच्य होता है बल्कि इसकी ऊर्जा हमें शान्त व निर्मलता भी प्रदान करती है | वहीं मांसाहार, अधिक चटपटे, तीखे व मसालेदार भोजन हमारे अन्दर गुस्से, आक्रोश व काम वासना को जागते हैं | फल-सलाद, हरी सब्जियों एवं दलों आदि खाने से न केवल पेट स्वस्थ रहता है बल्कि मन भी हल्का रहता | मांस, लहसुन-प्याज एवं मसाले अदि हमें आक्रोश व अतिरिक्त उर्जा से भरते हैं, जिसके कारण कई रोग तथा व्यवहार में उत्तेजना पैदा होती है 


जैसा मन वैसा भोजन

यदि यह सच है की ‘जैसा भोजन वैसा मन’ तो यह भी सही है ‘जैसा मन वैसा भोजन’ | सामने थाल में भोजन कितना भी सुंदर व सुगन्धित क्यों न हो यदि हमारा मन बेचैन, अशांत, दुखी व तनावपूर्ण होगा तो हमारा स्वादिष्ट भोजन भी पेट में जाकर जहर बनने में देर नहीं लगाएगा | सब कुछ मन पर निर्भर करता है | कुड़कर, गुस्से में या बेमन से किया गया भोजन कभी भी ठीक से नहीं पचता | भोजन कितना ही स्वादिष्ट क्यों न हो, यदि मन ही दुखी या उचाट होगा तो सब कुछ न केवल बेस्वाद लगेगा बल्कि खाने की इच्छा भी नहीं रहेगी | हम जिस भाव से खाते हैं वैसा ही व्यवहार करते हैं |

भोजन बनाने की मंशा :-

मन और भोजन का इतना गहरा सम्बन्ध है कि इसे बनाने वाले के मन का भी इस पर बहुत प्रभाव पड़ता है | आपको जन के हैरानी होगी कि भले ही किसी भोजन को कितने ही आराम से, विधि पूर्वक बनाया जाय पर यदि बनाने वाले का मन या मंशा सही नहीं है तो उसका प्रभाव भोजन पर अवश्य पड़ता है | आपने, खास तौर पर महिलाओं ने यह जरूर अनुभव किया होगा कि जब आप बीमार, थके हुए या चिड़चिड़े होते हैं तो खाना बनाना भी एक बोझ लगता है, जिसके कारण या तो कभी नमक ज्यादा हो जाता है या पड़ता ही नहीं है | चावल या रोटी कभी या तो जल जाती है या कच्ची रह जाती है | वहीं दूसरी और जब आप खुश होते हैं या किसी ऐसे के लिए खाना बनाते हैं जिससे आपको बेहद प्यार होता है तो खाने का स्वाद चौगुना हो जाता है | क्योंकि उस भोजन में सिर्फ सब्जी व मसाले ही नहीं होते, आपका सात्विक व शान्त मन भी होता है | यही कारण है की पूजा के प्रसाद या लंगर आदि का जो स्वाद होता है वह चाहकर भी घर के थोड़े खाने में नहीं आता | इसलिए भोजन में स्वाद भोजन बनाने वाले के मन से बहुत गहराई से जुदा होता है | जिसका प्रभाव भोजन तथा भोजन खाने वाले मन- व्यवहार पर भी पड़ता है | 

बोने व खरीदने की नीयत :- 

मन और भोजन से जुड़े सम्बन्ध के बारे में कुछ और शोध भी सामने आए हैं मसलन जिस भोजन को हम ग्रहण करते हैं उसमें उसको उगाने वाले एवं खरीदने वाले की ऊर्जा व नियत का भी गहरा असर पड़ता है| भले ही यह संबंध सूक्ष्म है या आप इसे नहिं मानते हों परन्तु यह सत्य है इससे जुड़े शोध तो यह तक बताते हैं- की साग– सब्जीया घर के राशन को खरीदने के लिए जिन रुपयों – पैसों का इस्तेमाल किया जाता है उस माध्यम तक का असर हमारे रासन-पानी पर पड़ता है | यदि यानी जिस कमाई को हम अपने खाने-पीने के लिए खर्च करते हैं वह कमाई किसी गलत धंधे का नतीजा तो नहीं | क्योंकि गलत कमाई से खरीदा गया अन्न भी नकारात्मक उर्जा देता है और उससे बना भोजन भी वैसा ही शारीर पर प्रभाव डालता है |

अन्न खरीदना तो दूर, करते हैं जो किसान जिस मंशा एवं पूंजी से बीज खरीदकर फसल उगाते है उस फसल तक में उसके कमाए धन व श्रम की ऊर्जा छिपी होती है | जिस मन से हम बीज बोते हैं, फसल उगाते है, उसकी रक्षा करते हैं, उसकी कटाई-छटाई करते हैं, उसे बोरों एवं दाम आदि में पैक करते हैं,सब में उर्जा संलग्न होती है | यहां तक कि खेत-खलिहान के पास का वातावरण कैसा है, उसको सींचा जाने वाला पानी कैसा है आदि सबका असर फसल पर पड़ता है | प्रदूषित वातावरण एवं जल से सिंची व उगाई गई फसल भी कही न कहीं हमें, हमारे भोजन को प्रभित करती है, जिसके कारण हमारा मन प्रभावित होता है और मन के कारण हमारा व्यवहार प्रभावित होता है |


अशुद्ध एवं मिलावटी भोजन

जैसा हमारा भोजन होगा वैसा हमारा स्वास्थ्य होगा | जिसे हम शुद्ध समझकर पकाते हैं वह भोजन चाहकर भी शुद्ध नहीं होता | आजकल जिस तरह के फर्टिलाइजर एवं पेस्टीसाइज खेतों में उपयोग किए जा रहे हैं उनसे पौधों की पैदावार में बेशक उन्नति हुई हो परन्तु उनकी गुणवत्ता में गिरावट आई है | समय से पहले फल-सब्जियों को बड़ा करने के लिए तरह-तरह के कैमिकल प्रयोग में लाए जाते हैं और मुनाफे के लालच में खाद्य पदार्थों में खूब मिलवाटे की जा रही हैं | सब कुछ तजा और रंग-बिरंगा दिखाने के लिए कृत्रिम रंगों का उपयोग किया जा रहा है | नकली सुगंध, नकली स्वाद में डिब्बा बंद चीजो को बेचा जा रहा है | आज रेडिमेड मसाले हैं, सूप हैं, चटनी हैं तथा कई तरह के व्यंजन एवं मिष्ठान हैं जो पहले से ही हाफ कुक्ड मिलते हैं जिन्हें बस थोड़ा मिलाना या गर्म करना होता है | ऐसे भोजन में क्या ताजगी होगी ? कितनी शुद्धता होगी ?

ताजे टमाटर एवं धनिया-पुदीने की सिल पर हाथ से पीसी चटनी का जो स्वाद है वह रेडिमेड मिलावटी चटनी में कहां ? फिर गाजर का हलवा हो या खीर, माँ के हाथों का अचार हो या चूल्हे की रोटी सबका अपना अलग ही महत्त्व और आनंद होता है | ताजा, शुद्ध व अपने हाथों का बना भोजन सदा दिल पर दस्तक देता है पर आजकल लोग या तो बाहर होटल-दुकान का खाना खाते हैं फिर घर में कुक रखते हैं जो उनके लिए खाना बनाते है | जिस भोजन को काटने-पकाने, बनाने-परोसने में न मन लगा न भाव उस भोजन की उर्जा कैसी होगी ? बड़े-बड़े रेस्टोरेंट एवं होटलों में कितनी सफाई व शुद्धता से भोजन बनाया जाता है यह हम सभी जानते हैं | परन्तु फिर भी इनकी सुगंध, रंग व प्रस्तुति सब इतनी आकर्षक होती है कि हम सब कुछ भूल कर इसे रोजमर्रा के जीवन में शामिल कर लेते हैं | यही कारण है की आज का आदमी पहले की तुलना में अधिक व शीघ्र बीमार पड़ता है | क्योंकि यह भोजन कई हाथों से गुजरता है और हाथ वाले के भाव भी उस्समे शामिल होते हैं इसलिए यह सब मिलकर हमारे मन को भी प्रभावित करते हैं | इतनी सारी अशुद्धता और मिलावटें जब भोजन बनकर सामने आती है तो हमारे मन-व्यवहार पर अप्रत्यक्ष प्रभाव डालती है, जिसका हमे पता भी नहीं चलता |


मुंह से ही नहीं मन से भी खाएं

भोजन को बस यूँ ही रोज की एक आदत या जरूरत समझ कर न खाएं | इसे पूर्ण समग्रता के साथ स्वीकार करते हुए , धर्म एवं होशपूर्वक ग्रहण करें | जब भी भोजन के सामने बैठें तो प्यार से धैर्य के साथ थाली में भोजन को देखें | उसके रूप, आकर, रंग एवं ताजगी को ध्यान से देखें | उसकी सुगंध का अनंद लें | भोजन की खेत से थाली तक की यात्रा पर कुछ क्षण विचारें | फिर परमात्मा या प्रकृति को इस बात का धन्यवाद दें कि आपको आज भोजन मिल रहा है | आप भाग्यशाली हैं कि भोजन कर पा रहे हैं | 

हाथ जोड़कर अन्न का सम्मान करते हुए अपना आचार व्यक्त करें और फिर भोजन ग्रहण करें |

रोजमर्रा की भागती जिंदगी में यह थोड़ा मुश्किल व अव्यवहारिक लगता है परंतु यदि आप ऐसी आदत डाल सकें तो आप अपने भोजन को एक औषधि के रूप में पाएंगे | एक भिन्न ताजगी, एक भिन्न ऊर्जा को अपने भीतर महसूस करेंगे और धीरे-धीरे आप पाएंगे कि आपके व्यवहार में भी सकारात्मक परिवर्तन आ रहा है | 

भोजन को पूरे होश और ईमानदारी के साथ खाएं | यह न भूलें कि भोजन हमे ऊर्जा देता है | वह हमारा पेट ही नहीं मन भी भरता है | इसके प्रति पूर्ण समर्पण और स्वीकारोक्ति का भाव रखना चाहिए | यह हमें जीवन ही नहीं सकारात्मक या नकारात्मक ऊर्जा भी देता है | हम इसे जिस ढ़ंग व भाव व्यवहार में वही भाव परिलक्षित होगा |  

ऑर्गेनिक फूड खाएं रोगों को दूर भगाएं

रवद्य पदार्थों में जहरीले केमिकल्स की मिलावट के कारण आज हर कोई कई रोगों से घिरता जा रहा है | ऐसे में ऑर्गेनिक फूड का चयन करना एक बेहतर विकल्प हो सकता है |

जैसे – जैसे लोग सेहत को लेकर सतर्क हो रहे हैं , वैसे – वैसे अपने खान – पान पर भी खास ध्यान देने लगे हैं | इस बात में कोई दो राय नहीं कि आजकल हर चीज में मिलावट होने लगी है | बात चाहे मिठाइयों की हो या दूध की कुछ भी इससे दूर नहीं है | यही मिलावट फल और सब्जियों में भी होने लगी है | आज हम फल व सब्जियों के नाम पर पेस्टीसाइड्स खा रहे हैं | फसलों की पैदावार से लेकर उन्हें बेचने तक सुरक्षित रखने के लिए पेस्टीसाइड्स का इस्तेमाल किया जाता है |इन्हें इंजेक्शन के जरिये पकाया जाता है और कैमिकल व रंग लगाकर फ्रेश दिखाने की कोशिश की जाती है |ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है की स्वस्थ रहने के नाम पर हम कैसे बिमारियों गले लगा रहे हैं? हालांकि डरने की कोई बात नहीं है , क्योंकि इस अनदेखे जहर से बचने का भी उपाय है |वः है ऑर्गेनि फूड |


ऑर्गेनिक फूड है विकल्प

ऑर्गेनिक फूड कैमिकल युक्त फल व सब्जियों का सबसे अच्छा विकल्प है |मिलावटी खाने से बचने की कोशश में ऑर्गेनिक फूड को खूब तवज्जो दि जा रही है |लोगों को यह विश्र्वास हो गया है कि ऑर्गेनिक फूड खाकर उन्हें किसी तरह का खतरा नहीं हिगा | सब्जियों को कृत्रिम तरीके से उगाने की रोज आती खबरों ने लोगों के अंदर ऐसा डर भर दिया है कि यह ऑर्गेनिक फूड की ही डिमांड करते हैं | लेकिन ,आंख मूंद कर किसी भी चीज का भरोसा ठीक नहीं | आप जिस ऑर्गेनिक फूड को सेहत के लिए संजीवनी मान रहे हैं ,उसके बारे में कुछ जानकारी होना भी जरूरी है | आइए ,जानते हैं क्या है ऑर्गेनिक फूड और कैसे होता है तैयार –


क्या है ऑर्गेनिक फूड ?   

ऑर्गेनिक फ़ूड वो होते हैं जिन्हें नेचुरल तरीके से उगाया जाता है | चाहे वह सब्जी –फल हो या दाल ,दूध और अनाज सभी को उगाने में किसी भी तरह के पेस्टीसाइड्स और कैमिकल्स का बिल्कुल इस्तेमाल नहीं होता | इस विधि से उगाई गई सब्जी में किसान किसी तरह के बायोइंजीनियर्ड जींस नहीं प्रयोग कहते हैं | इन पौधों को जल्दी बड़ा करने के लिए एंटीबायोटिक ,ग्रोथ हार्मोन्स या जानवरों से निर्मित प्रोडक्ट का भी सहारा नहीं लिया जाता | इसलिए यह पूरी तरह प्राकृतिक पोषण से भरपूर होते हैं | 


कैसे है फायदेमंद ?   

न्यूट्रीशनिस्ट और लाइफ स्टाइल एक्सपर्ट डॅा. नेहा गुप्ता का कहना है कि ‘आर्गेनिक फूड कई मायनों में हमारे लिए मददगार साबित हुए हैं | ऐसे कई मामले सामने आए ,जिनमें व्यक्ति को कोई फल या सब्जी खाने से एलर्जी होती है ,लेकिन ऑर्गेनिक फूड के इस्तेमाल से उनकी बीमारी ठीक हो गई | इस तरह के फूड में किसी तरह का पेस्टीसाइड नहीं होता, इसलिए ये फ्रेश होते हैं और इनमें पोषक तत्त्वों की मात्रा भी ज्यादा होती हैं | 


कैसे होता है तैयार ? 

ऑर्गेनिक  फूड एकदम नेचुरल खाद से तैयार किए जाते हैं |इसे प्राकृतिक खाद जैसे गाय के गोबर और अच्छी मिट्टी में उगाया जाता है |प्राकृतिक खाद को रोटेट करके इसी में फल और स सब्जियां उगाई जाती हैं |इन्हें हर तरह के कैमिकल और पेस्टीसाइड्स से दूर रखा जाता हैं | ऑर्गेनिक फूड को पेस्टीसाइड्स और आर्टिफिशियल प्रिजरवेशन से दूर प्राकृतिक खाद में तैयार किया हटा हैं | सबसे अहम बात यह है कि  ऑर्गेनिक फूड की खेती क्योंकि यह कम क्षेत्र में की जीती है जबकि सामान्य फल और सब्जियों के रख-रखाव और उन्हें कीड़े-मकौड़ो तथा फंगस से बचने के लिए इस पर रसयनिक दवाइयां छिड़की जाती हैं |लेकिन ऑर्गेनिक फूड के साथ ऐसा नहिं होता | 


क्या हैं लाभ ?  

ऑर्गेनिक फूड उच्च पोषक तत्त्व युक्त आहार है |कई शोधों से यह बात साबित भी हो चुकी है कि इसमें मौजूद न्यूट्रीएंट्स ,जैसे –एंटीऑक्सीडेंट्स बेहतर होते हैं | इसलिए ,वे लोग भी बिना किसी डर के ऑर्गेनिक फ़ूड को खा सकते हैं जिन्हें बाजार में मिलने वाली साधारण सबिज्यों में कैमिकल्स का डर हो या इसके चलते उन्हें एलर्जी की समस्या हो | न्यूट्रीशनिस्ट एंड लाइफ स्टाइल काउंसलर नेहा गुप्त गर्ग का कहना है कि ‘ऑर्गेनिक खाद्य पदार्थो में पोषक तत्त्वों की गुणवत्ता काफी अच्छी होती है | इनका सेवन शरीरिक सेहत को तो दुरुस्त रखता ही है ,साथ ही मानसिक तौर पर भी मजबूत बनाता है | पूरी तरह कैमिकल और पेस्टीसाइड्स तौर पर भी मजबूत बनाता है | पूरी तरह कैमिकल और पेस्टीसाइड्स से रहित होने के कारण ऑर्गेनिक फूड स्वास्थ्य के लिए खासे फायदेमंद हैं | साधारण तरीके से उगाए गए फल और सब्जी में जहरीले रासायनिक तत्त्वों नाजुक अंगों पर पड़ता है |लंबे समय तक कैमिकल युक्त खाद्य पदार्थ खाने से कई अंग ख़राब भी हो सकते हैं |जबकि आग्रोनिक फूड का इस्तेमाल बेधड़क किया जा सकता है |


बना रहता है भावनात्मक संतुलन           

आग्रोनिक फूड शारिरीक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए तो अच्छा देख –देख की ज्यादा होती आग्रोनिक खेती करने वाले किसान इसके रख –रखाव के लिए फसल चक्र को अपनाते हैँ और नेचुरल खाद्य –पानी का ही प्रयोग करते है |


कैसे पहचानें ?

आग्रोनिक फूड की पहचान काफी मुश्किल होती है | आग्रोनिक फूड की पैकेजिंग क्योंकि कंपनी से होकर आती है | ऐसे में उत्पाद पर लगे लेबल को ध्यान से पढ़कर उसकी परख की जा सकती है | देखने में यह सामान्य खाद्य पदार्थों जैसे ही लागतें है लेकिन, हानि कारक रसायन तत्त्वों से पूरी तरह फ्री होते हैं | 


क्यों खाएं ?

स्वस्थ रहने के लिए पौष्टिक खाने की शुरुआत एक अच्छा कदम है | चाहे फल हो या सब्जियां या अनाज सभी के पौष्टिक तत्वों की क्या मात्रा है यह मायने रखता है | आप जिस फल को खा रहे हैं उसे किस विधि से उगाया गया है इसका आपकी सेहत पर काफी प्रभव पड़ता है | यही सजगता सवाल खड़ा करती है की ऑर्गेनिक और लोकल फूड में क्या बेहतर है | हालांकि सच्चाई जानने के बाद आप अपने लिए ऑर्गेनिक फूड का ही चयन करेंगे |


किसानों को भी होता है फायदा

जिन खेतों में ऑर्गेनिक तरीके से फसलें उगाई जाती हैं वहां की मिट्टी के उर्वरक तत्त्व नष्ट नहीं होते | जबकि सामान्य तौर पर फसलों में किसान पेस्टीसाइड का छिड़काव करते हैं | ऑर्गेनिक फूड में प्राकृतिक खाद के इस्तेमाल से खेतों में पैदावार भी ज्यादा होती है | दूसरा इसकी कीमत किसानों को अच्छी-खासी मिलती है | कई बार तो फसल तैयार होने से पहले ही लोग उसके दाम लगाने शुरू कर देते हैं |


अन्य फायदे

ऑर्गेनिक खेती मिट्टी की उर्वरकता को बढाती है | पेस्टीसाइड का इस्तेमाल न होने से पशु-पक्षी भी सुरक्षित रहते हैं और कई प्रजातियों को ख़त्म होने से बचाती है |

कहीं नाश्ता न कर दे सब नाश

हमारे उत्तम स्वस्थ्य के लिए सुबह का नाश्ता करना बेहद जरूरी है | यह तो हम सब जानते ही हैं लेकिन क्या आप जानते हैं की आपके द्वारा किया जाने वाला नाश्ता ही आपकी सेहत के लिए नुकसानदेह हो सकता है ? कैसे ? आइये ,जानते हैं | वह नाश्ता जो दिन भर हमारे शरीर को सबसे अधिक ऊर्जा प्रदान करता है ,उसे नजर अंदाज करना किसी भी रूप में उचित नहिं है |लेकिन यह जानना भी जरूरी है की नाश्ते में हम जो भी खा रहे हैँ ,वो हमें नुकसान न पहुंचाए|दरअसल हम जाने अनजाने कई ऐसे खाघ पदार्थों का सेवन करते हैं जो कि हमारे शरीर के महत्त्वपूर्ण अंग दांत के लिए नुकसानदेह हो सकता है | स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद कई खाघ पदार्थ ऐसे हैं जो आपके दांतों को क्षति पहुंचा सकते हैं | जैसे बेहद कम चिकनाई वाली चॅकलेट तथा विटामिन से भरपूर फल | गिरीदार फल ,संतरा तथा दही आपके फल | गिरीदार फल ,संतरा तथा दही आपके दांतों के लिए बेहद हानिकारक है | डॉक्टर आम तौर पर आपको रोज एक सेब खाने की सलाह देते हैं लेकिन स्वास्थ्य के लिए लाभदायक ये सेब आपकों दातों को नुकसान पहुंचाता है | जबकिसेहत के लिए नुकसानदेह चिप्स और चॉकलेट आपके दांतों के लिए फायदेमंद है | ब्रिटिश वैज्ञानिकों का मानना है | कि हम जो भी चीजें खाते हैं उनमें से ९९  फीसदी हमारे दातों के लिए नुकसानदायक होते हैं | सिर्फ पानी ,चीज और दूध ही दांतों के लिए फायदेमंद है | इसलिए इन नुकसानदेह चीजों का सेवन सावधनी से करना चाहिए ताकि दांतों को नुकसान से बचाया जा सके | 

सेब -  सेब के बारे में आमतौर परयही धारणा है कि शरीर और दांत के लिए फायदेमंद है ,पर डाॅक्टरों का कहना है कि इसमें उच्च मात्रा में फ़ूड शुगर मौजूद होने से यह दांतों के लिए बेहद नुकसानदायक है | शोधकर्ताओं के अनुसार कुछ सेबों में तो चार चम्मच तक शुगर मौजूदा होती है | उनका यह भी कहना है कि आजकल सेब में तो शुगर की मात्रा पंद्रह फीसदी बढ़ी हुई है | सेब में शुगर के साथ - साथ एसिड भी काफी मात्रा में होता है | इसकी वजह से दांतों का क्षरण जल्दी शुरू हो जाता है | इनेमेल में फ्रैक्चर होने का खतरा रहता है तथा दांतों की चमकदार परत भी क्षतिग्रस्त हो सकती है | बेहतर होगा सेब का सेवन अकेले न करके ,इसे अन्य ऐसे खाद्य पदार्थों केसाथ खाया जाए ,जो मीठे और खट्टे नहीं होते | 


संतरा- निंबू प्रजाति के अन्य खट्टे फलों की तरह संतरे और चकोतरे में भी एसिड उच्च मात्रा में पाया जाता है | ऐसे फलों का लगातार सेवन करने से दांतों पर एसिड का हमला होता है | संतरों का लगातार सेवन करणे से इसमें मौजूद शुगर दांतों को सड़ा देते हैं | इसलिए संतरे का सेवन जल्पान की जगह भोजन के समय करना चाहिए | 


ड्राई फ्रूट्स - ड्राई फ्रूट्स एनर्जी से भरपूर होते हैं , मगर इनमें भी शुगर की मात्रा ज्यादा होने से ये दांतों को नुकसान पहुंचाते हैं | खाते समय ये ड्राई फ्रूट दांतों पर जमी प्लेक से चिपक जाते हैं , जिसके कारण इनमें मौजूग शुगर दांतों को सडाने का काम शुरू कर देती है | अगर आप नाश्ते में ड्राई फ्रूट्स खाना भी चाहते हैं तो अपने नाश्ते में चीज जैसे क्षारीय खाद्य पदार्थों को भी शामिल करें |


दही -  दही और दही युक्त खाद्य पदार्थ भी नाश्ते के लिए ज्यादा  जरूरी समझे जाते हैं,जबकि दही में एसिड ज्यादा होता है | एसिड की वजह से बच्चों के ही नहीं बड़ों के दांतों की भी चमकदार परत कमजोर पड़ने लगती है | इसलिए दही का सेवन नाश्ते के जगह भोजन के साथ करना उपयुक्त है | क्योंकि भोजन में मौजूद अन्य पदार्थों के कारण दही में मौजिद एसिड का असर दांतों पर कम हो जाता है | भोजन के समय लार में नमक की मात्र बढ़ जाती है, फल स्वरूप असिड बेअसर हो जाता है | भोजन के बाद दो से चार घंटे तक नमक शुगर और एसिड से दांतों की रक्षा करता है |


इन्हें शामिल करें नाश्ते में 


ओट्स - ओट्स यानी दलिया,सबसे अच्छा स्नैक्स होता है | इसे खाने से पेट भर जाता है | आप इसे कई तरीके से खा सकते हैं जैसे- मिल्क वाला दलिया या सब्जियों वाला दलिया | इसे नियमित रूप से खाने से कोलेस्ट्राँल बढ़ने की समस्या नहीं होती है और दिल स्वस्थ रहता है | आप चाहें तो इसे नाश्ते में भी ले सकते हैं | हेल्दी हार्ट के लिए ओट्स जरूर खाएं |


बाउन ब्रेड सैंडविच – साधारण ब्रेड मैदे से निर्मित होती है, जो खाने के बाद सुपाच्य नहीं होती है | ऐसे में ब्राउन ब्रेड का इस्तेमाल करें | नाश्ते में ब्राउन ब्रेड का इस्तमाल करें | सैंडविच को बनाने में आप कई प्रकार के सब्जियों का इस्तमाल कर सकती है | इस प्रकार के खाद्य पदार्थ में विटामिन, मिनरल और पोषक तत्त्व भरपूर मात्रा में होते है | 


सूप – सूप सबसे अच्छे स्नैक्स होते हैं जो पेट को अच्छी तरह से भर देते है और स्वास्थ्यवर्धक भी होते हैं | सूप कई प्रकार की सब्जियों और दालों से बनता है | पालक और टमाटर का सूप सबसे लाभदायक होता है | इस में भरपूर मात्रा में पोषक तत्त्व और एंटी आँक्सीडेंट तत्त्व होते है | सब्जियों वाला सूप ज्यादा लाभकारी होता है | आप ब्रेकफास्ट में सूप का सेवन कर सकते हैं |


स्प्राउट चाट – स्प्राउट में ढेर सारे पोषक तत्त्व होते हैं जो शारीर में कोलोस्ट्राँल को मेन्टेन रखते हैं और दिल को स्वस्थ बनाए रखते हैं |हर दिन सुबह नाश्ते में अंकुरित चना या फिर कोई भी अन्य स्प्राउट को प्याज, टमाटर, हरी मिर्च आदि के साथ मिलकर खाना चाहिए, आप चाहें तो इस में नींबू और ब्लैक पेपर भी मिला सकते हैं | 


दिल के लिए जरुरी है नाश्ता - आपके  नाश्ता के कारण आपके दांतों को नुकसान न पहुंचे,इस डर से आप नाश्ता करना ही न छोड़ दें | हमारे अच्छे स्वस्थ्य और खासकर दिल की तंदरुस्ती के लिए नाश्ता करना बेहद जरूरी है | हां , नाश्ते में से नुकसानदायक चिजोको हटाया जा सकता है पर पूरा नाश्ता नहीं छोड़ा जा सकता | हाई ब्लड प्रेशर , हाई कोलेस्ट्राल लेव 

नाश्ता न करने से केवल दिल की ही बीमारियां नहीं होती बल्कि इससे मोटापा , ल और डायबिटीज आदि की 

संभावना भी बढ़ जाती है | यदि समय रहते इस ओर ध्यान दें तो आप अपने दिल 

को बीमार होने से बचा सकते हैं | नाश्ता हमारे बेहतर जीवन की शुरुआत के लिए सबसे जरूरी भोजन है | अपने नाश्ते में कई तरह के हैल्दी फूड को शामिल 

करें , जिसमें प्रोटीन , कार्बोहाइड्रेट , विटामिन और मिनरल्स आदि भरपूर मात्रा में हों | ऐसा करने से आपमें भरपूर एनर्जी रहेगी | दिन की भेहतर शुरुआत के लिए सेरल बेहतर आँप्सन है | ओटमील भी दिन की परफेक्ट ब्रेकफास्ट लिस्ट में आता है |इसलिय नाश्ता छोड़ने से बेहतर है की आप खाध पदार्थोँ का सेवन समयानुसार व अपनी सेहत को ध्यान में रखते हुए करें | आपको अपने नाश्ते में शामिल खाध पदार्थों पर ध्यान देने के साथ –साथ अन्य जरूरी बातोँ पर ध्यान देने की आवश्यकता है ,जिससे आप अपने दांतों को लंबे  समय तक स्वस्थ रख सकते 


रोज दो बार ब्रश करें – दांतों को सड़के से बचने का सबसे आसान उपाय है रोज दो बार ब्रश करें |सुबह सोकर उठने के बाद और रात को सोने से पहले ,रोज सही तरीके से दांत साफ होता है |


रोज करें फ्लास- खाना खाते वक्त कई बारीक कण  दांतों में फंस जाते जो ब्रश से भी साफ नहिं होते |ऐसे में ब्रश करने के दौरान फ्लास की आदत डालें |इससे अच्छी तरह साफ होते है |


खाने के बाद करें कुल्ला – नाश्ता-खान या फिर चाय –काफी ,इनके सेवन के बाद पानी के कुल्ला करने की आदत डाले | इससे मुह साफ रहेगा और दांत लंबे समय तक मजुबुत  रहेगा |


प्रिजव्रेटीव्स या पैक्ड डाइट से बचे - प्रिजव्रेटीव ड्रिंक्स या फास्ट फूड का सेवन दांतों के लिय भी बहुत फायदेमंद नहिं है |इनमे मौजूद शुगर और प्रीजव्रेटिव्स दांतों को नुकसान पहुंचाते है |


सीलेंट  की कोटिंग –  दांतों पर कैविट से बचाव के लिय सिलेंट की कोटिंग करवा सकते है | इससे दातों को बैक्टीरियाई संक्रमण से बचने में मदद मिलती है | खासतौर पर बच्चों के लिए सीलेंट की कोटिंग सबसे सुरक्षित तरीका है |


इस्तेमाल करें माउथवाँश –  बाजार में कई एंटीमाईक्रोबिल माउथवाँश उपलब्ध हैं, जिनके इस्तेमाल से दातों को सड़ने से बचाया जा सकता है | रोज ब्रश करने के बाद माउथवाश का इस्तमाल करें |


सुगर फ्री च्युइंगम- सुगर फ्री च्युइंगम चबाने के दौरान मुंह में लार बनती है, जिससे दांतों को संक्रमण से बचने में मदद मिलती है | आप चाहें तो बिना च्युइंगम खाए भी की एक्सरसाइज करें | इससे मुंह में लार बनेगी और दांत संक्रमण मुक्त होंगें |


बेकिंग सोडा से बचें – खाने में बेकिंग सोडा के ज्यादा सेवन या इस्तेमाल से बचाव करें | पहले इसके इस्तेमाल से आपको दांत सफ़ेद और चमकदार लग सकते हैं लेकिन बाद में दांतों में पीलापन आ जाता है |


गाढ़े रंगों के खाद्य पदार्थ न लें – ज्यादा गाढ़े रंग वाले फलों या खाद्य सामग्रियों के सेवन से बचें | सोया सॉस, मरिनारा सॉस आदि दांतों पर दाग छोड़ देते है |


एनर्जी ड्रिंक के ज्यादा सेवन से बचें – बहुत ज्यादा मात्र में एनर्जी ड्रिंक न पिएं | इसमें मिला हुआ एसिड दांतों को नुकसान पहुंचाता है और दांतों की सफेदी चली जाती है |


दांत साफ रखने के टिप्स

· समय-समय पर अपने ब्रश को बदलते रहें | हर तीन महीने में ब्रश को बदलना सही रहता है | ब्रश अच्छी क्वालिटी का होना चाहिए ताकि दांतों और मसूड़ों को नुकसान न पहुंचे |

· जीभ साफ रखें | जब भी ब्रश करें, अपनी जीभ को साफ करना कतई न भूलें | इससे सांसों में बदबू नहीं आएगी और मुंह फ्रेश रहेगा |

· फल को काटकर खाने से बेहतर है कि उसे साबुत ही खाएं | इससे दांतों में मजबूती आएगी, दांत साफ रहेंगे और स्ट्रोंग बनेंगे |


इन बातों पर भी दें ध्यान 

· अपने नाश्ते पर एक नजर डालिए और फिर उसके गुणों के आधार पर आकलन कीजिए कि आखिर आप किस तरह का भोजन ले रहें हैं | क्या आपके नाश्ते में फल, सब्जी अनाज व दुसरे पौष्टिक पदार्थों का समावेश है ? ये आपको कितनी कैलोरी प्रदान कर रहे हैं, इसे भी चेक करें |

· आमतौर पर ४० वर्ष की आयु के बाद चिकित्सक घी, मक्खन व दूसरे वसायुक्त खाद्य पदार्थों की मात्रा बहुत कम कर देने या बिल्कुल बंद कर देने का परामर्श देते हैं | लेकिन अगर आपको घी, मक्खन आदि का सेवन करना ही है तो खूब शारीरिक श्रम करें | घी, मक्खन के सेवन से हानि की आशंका तब अधिक बढ़ती है जब कोई व्यक्ति शारीरिक श्रम बिल्कुल नहीं करता |

· हृदय रोगों से सुरक्षा के लिए पौष्टिक खाद्य पदार्थों का नाश्ते में समावेश सुनिश्चित करना चाहिए | क्योंकि नाश्ता दिनभर की भोजन सामग्री की मात्रा ही नहीं दिशा भी तय करता है |

· आपके भोजन में शारीरिक शक्ति व रोग निरोधक क्षमता के लिए सभी पौष्टिक तत्त्व संतुलित मात्रा में होने चाहिये | अपनी रूचि व स्वाद के लिए इसमें थोड़ा-बहुत परिवर्तन किया जा सकता है, लेकिन इतना अधिक नहीं कि किसी एक खाद्य पदार्थ की मात्रा इतनी कम न कर दी जाए कि उसकी अल्प मात्रा के कारण शरीर को नुकसान पहुंचे |

जल ही जीवन है

जल के बिना मनुष्य जीवन की कल्पना ही नहीं की जा सकती | इसके बिना मनुष्य की मृत्यु तक हो सकती है | जल के व्यापक महत्त्व व इस से संबंधित समस्याओं को जानें इस लेख से | 

जल सृष्टि के पांच मूलभूत तत्त्वों में से एक है | जीवन के लिए अनिवार्य तीन पदार्थो में प्राण – वायु के बाद पानी का दूसरा स्थान है | अतुल मात्रा में जल का होना हमारी धरती की एक विशेषता है | यही कारण है की सौर मंडल के तमाम ग्रहों में केवल पृथवी पर हि जीवन की उत्पत्ति हुई | हमारी धरातल पर लगभग 70 प्रतिशत भाग जल का होना के होने के बावजूद यह एक कटु सच्चाई है कि दुनिया की आधी आबादी को पीने का स्वच्छ पानी नहीं मिलता है |

जीवन का आधार है जल:- 

जल जीवन का आधार है | जल द्वारा ही भोजन के पोषक तत्त्वों को कोशिकाओं तक पहुंचाया जाता है और अवशिष्ट पदार्थ विसर्जित होकर शरीर से बाहर निकलते हैं |मनुष्य के शरीर में मौजूद जल पाचन संस्थान को स्निग्धता प्रदान करते है | एक व्यक्त मनुष्य के शरीर में शीतोष्ण जलवायु में लगभग 1200 मिलीलीटर जल की आवश्यकता होती है और 100 मिलीलीटर आंत्र विसर्जन के रूप में बाहर निकलता है |       शरीर में उपलब्ध जलराशि का संचालन व्यक्ति की प्यास और भूख पर निर्भर करता है मनुष्य के रक्त के तरल भाग प्लाज्मा में लगभग 90 प्रतिशत जल होता है | शरीर का पानी दो भागों में बंटा होता है – कोशीय जल तथा बह्मकोशीय जल | शरीर के कुल वजन का चालीस प्रतिशत कोशीय जल एवं कुल भार का बीस प्रतिशत बह्मकोशीय जल होता है | घुलनशीलता पानी का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण गुण है | इसी के माध्यम से यह रासायनिक उतार – चढ़ाव को संतुलित बनाए रखता है | इसी से ऊष्मा नियंत्रित रहती है तथा शरीर की विच्छिन्नता रुक कर शरीर का तापमान सामान्य बना रहता है | 

शरीर की सफाई करता है जल :-

आयुर्वेद के ग्रन्थों में जल को जीवन भी कहा गया है क्योंकि यह शरीर का पोषण करके उसे चुस्त – दुरुस्त रखता है | जल जहां हमारे शरीर की टूट –फूट को ठीक करने में सहायक है , वहीं अनेक रोग भी इससे दूर हो जाते हैं |जल शरीर की विभिन्न प्रक्रियाओं के संचालन में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है | हमारा शरीर पांच तत्त्वों – पृथवी , तेज , वायु , आकाश और जल से मिलकर बना है , इस लिए यह शरीर के लिए अनिवार्य है | भोजन के बिना हम कुछ दिन जीवित रह सकते हैं लेकिन जल के बिना दो-चार घंटे भी रह पाना मुश्किल है | इस का कारण यह है की हमारे शरीर के रक्त का 70 प्रतिशत भाग जल हि है | इस लीए शरीर में पानी की कमी होते हि हमें प्यास लगती है | चिकित्सकों का हैं | हमारे शरीर से प्रतिदिन प्रायः 2600 ग्राम पानी निकल जाता है – गुदों से 1500 ग्राम , त्वचा से 650 ग्राम , फेफड़ों से 320 ग्राम और जल मार्ग से 120  ग्राम | हमारा शरीर इस कमी को जल पिने तथा भोजन करने से पूरी करता है | इसके अलावा शरीर के विषैले तत्त्वों को बाहर निकालने के लिए भी शरीर को जल की आवश्यकता होती है | ये विषैले पदार्थ पसीना , थूक , आंसू , मल , मूत्र आदि द्वारा निकलते हैं | शरीर में विषैले पदार्थ भोजन की प्रतिकूलता ,शरीर की विभिन्न प्रक्रिया ,मौसम के प्रभाव आदि के द्वारा उत्पन्न होते रहते हैं |

प्यास लगने का अन्य कारण यह है कि एक क्षण में हमारा दिल जितनी बार धड़कता है ,उतनी ही बार रक्त की एक विशेष मात्रा हमारी नाड़ियों के रास्ते संपूर्ण शरीर में प्रवेश करती है | निरंतर शरीर में परिभ्रमण करते रहने से रक्त गाढ़ा तथा दूषित हो जाता है | रक्त में पानी मिलते रहने से वह शुद्ध होता रहता है तथा गाढ़ा तथा दूषित हो जाता है | रक्त में पानी मिलने रहने से वः शुध्द होता रहता है तथा गाढ़ा भी नहीं हो पाता | जब हमारी नसों को रक्त के परिभ्रमण तथा पाचन क्रिया के लिए जल की आवश्यकता अनुभव होती है ,तो वह उसे प्यास द्वारा प्रकट कर देती है | अतः  प्यास को अधिक देर तक नहीं टालना  चाहिए | इसके अलावा शरीर प्रत्येक ऊतक की आवश्यकता की वस्तु को जल में घोलकर  उस ऊतक तक पहुंचाता है तथा उसके हानिकारक पदार्थों को शरीर से बाहर निकालने में सहायता प्रदान करता है | यदि हम जल न पिएं या  कम जल पिएं तो शरीर को अनेक रोग घेर लेते हैं | अतः हर व्यक्ति को नित्य ढाई  -तीन लीटर जल अवश्य पीना चाझिए | कब्जा को समस्त रोगों की जड़ कहा गया है | इसका मूल कारण शरीर में पानी की कमी हि है | जब भोजन पचकर शेष भाग बड़ी आंतों में पहुंचता है , तो पानी की कमी के कारण वह बहुत कठोर हो जाता है | इस लिए उसे बाहर निकालने में बहुत कष्ट होता है | यही कारण है कि इससे पेट के तमाम रोगों , दुर्बलता , अरुचि , अनुत्साह आदि की उत्पत्ति होने लगती है | अतः खाली पेट तथा भोजन करने के लगभग  डेढ़ दो – घंटे बाद पानी का सेवन नियमित रूप से करते रहने पर कब्ज से छुटकारा पाया जा सकता है | प्राकृतिक चिकित्स कों का कहना है की प्रातःकाल बासी जल का सेवन करके शौचादि क्रिया करने वाला व्यक्ति दीर्घायु प्राप्त करता है | मानसिक क्लेश , चिंत्ता और अशांति दूर होता है | पतलेपन और मोटापे पर भी जल का प्रभाव पड़ता है | हमारा शरीर असंख्य सैलें के प्रभाव पड़ता है |हमारा शरीर असंख्य सैलों के योग से बना है |ये सैलें पानी प्राप्त करके फूल जाती हैं | और पानी न मिलने पर सिकुड़ जाती हैं | यही सिध्दांत व्यक्ति के मोटापे और पतलेपन से संबंघित है | यदि व्यक्ति पतला है तो उसे प्रचुर मात्रा में जल या जल वाली वस्तुओं का सेवन करना चाहिए ताकि सैलों को पर्याप्त जल मिल सके और व्यक्ति मोटा हो सके | मोटापा कम करने के लिए जल अथवा पानी वाली वस्तुओं का  प्रयोग कम कर  देना हितकर है | यदि खाली पेट पानी पिया जाए तो वह लगभग 30-35 मिनट बाद पिया हुआ जल भोजन में मिलकर उसके साथ धीरे – धीरे पचता हुआ सैलों में समाता रहता है | इस लिए मोटे व्यक्तियों को निराहार और खाली पेट हि जल पीना चाहिए तथा पतले व्यक्तियों को भोजन के बाद थोड़ा –थोडा़ पानी पीना चाहिए | पानी अथवा कोई भी पेय पदार्थ अधिक गर्म अतवा ठंडा नहीं लेना चाहिए | ऐसा करना स्वाथ्य के लिए अत्यंत हानिप्रद है ||  

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